VIVEK SHARMA |
किसी भी राष्ट्र की एकता अखण्डता और प्रभुसता इस बात पर निर्भर करती
है कि उसका अपना राष्ट्रीय चिन्ह हो, राष्ट्रीय ध्वज हो, गीत हो और
भाषा हो। भाषा हमारी सांस्कृतिक अस्मिता से जुड़ी होती है
हिन्दी भारत की भावनात्मक एकता की भाषा है।
हिन्दी प्रेम की भाषा है । हिन्दी हृदय की भाषा है । यही उसकी शक्ति है। इसी शक्ति के बल पर वह
राष्ट्र भाषा के गौरवशाली पद पर आरूढ़ हुई
है । हिन्दी का इतिहास बहुत ही पुराना है । सैकड़ों वर्षों से सन्तो और तीर्थ यात्रियों
तथा व्यापारियों ने सारे देश में हिन्दी को व्यवहारिक रूप् से सम्पर्क भाषा बनाया
और माना। 18वीं शताब्दी में केरल के शासक महाराज स्वाती तिरूनाल
ने भी मध्ययुग में अपनी मातृभाषा के
अतिरिक्त हिन्दी का प्रचार और प्रसार किया था। हिन्दी भारत की आत्मा की वाणी है।
वह मन की भाषा के रूप् में युगों से राष्ट्र
के भावों की अभिव्यक्ति करती चली आ रही
है। तुलसी, जायसी, रसखान, रहीम, सूर और मीरा ने इसे जहां संवारा था वहीं
भारतेन्दु दयानन्द सरस्वती ईश्वर चन्द्र विद्यासागर जैसे लोगों ने इसकी शक्ति का
बोध राष्ट्र को करवाया था। महात्मा गांधी और देश के आधुनिक लोकनायकों ने इसे राष्ट्रीय
एकता का साधन माना था। इसलिए संविधान में हिन्दी स्थिति राष्ट्र भाषा के रूप् में सर्वसम्मति से स्वीकृत की गई। भाषा नदी
की धारा की तरह सतत प्रवाहमान् होती है।
जिस समाज में भाषा का विकास
हो जाता है वहा समाज जड़ता की ओर उन्मुख होता है। आजादी के बाद विद्वद् समाज ने भाषा
के रूप् और स्वरूप की कल्पना की इस संदर्भ
में कहा जा सकता है - हिन्दी में बंग्ला का वैभव गुजराती का संजीवन मराठी की
चुलबुल कन्नड़ की मधुरता और संस्कृत का ओजस्व है । प्राकृत ने इसका श्रृंगार किया
है और उर्दू ने इसके हाथों में मेंहदी लगाई है ।
हिन्दी एक समृद्ध भाषा है
इसकी वैज्ञानिक लिपि और विपुल साहित्य है। शब्द रचना और शब्द सम्पदा वैज्ञानिक
होने के साथ अपार है । हिन्दी भाषा सरलता
से ग्राहय है और पूर्णतय सुव्यवस्थित है । तर्क दिया जाता है कि अंग्रेजी के बिना
हम पिछड़ जाऐगे। यह तर्क मिथ्या है। वैज्ञानिक प्रतिभा का सम्बंध बुद्धि से होता है
भाषा से नहीं दुनिया उसी का सम्मान करती
है जो स्वयं अपना सम्मान समझे व करे। हम जब स्वयं अपनी भाषा का सम्मान नहीं करेंगे
तो अन्य क्यों करेंगे। चीन के किसी विज्ञान मेले में चले जाएं तो अंग्रेजी में एक
भी मंडप या प्रदर्शनी नहीं दिखाई देगी।
जापान में जापानी भाषा चलती है अंग्रेजी
नहीं तो क्या जापान पिछड़ गया। हिन्दी के पास वृहद शब्दकोश है जो विश्व की अमूल्य
धरोहर है । विज्ञान के क्षेत्र में आत्म निर्भरता के लिए हिन्दी में विज्ञान चिंतन
आवश्यक है। इसी से देश की प्रतिभा पलायन पर अंकुश लगेगा। अपनी भाषा का कोई भी विकल्प नहीं हो सकता मात्र हम में भाषायी
स्वाभिमान की कमी है। मैं समझता हूं कि भारतेन्दू हरिशचन्द्र की ये पंक्तियां
हमारे स्वाभिमान को अवष्य जागृत करेगी
निज भाषा उन्नति है सब भाषा की मूल।
बिन निज भाषा ज्ञान के मिटे न
हिए का 'शूल।।
- विवेक शर्मा
भाषा अध्यापक
राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय,
बड़ागांव, शिमला 172 027
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